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ग़ज़ल
वो काफ़िर आश्ना ना-आश्ना यूँ भी है और यूँ भी
हमारी इब्तिदा ता इंतिहा यूँ भी है और यूँ भी
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
एक इक ज़र्रे को जौहर-आश्ना मैं ने किया
शो'लगी के बंद दरवाज़ों को वा मैं ने किया
ग़ुलाम मुस्तफ़ा फ़राज़
ग़ज़ल
यूँ तरन्नुम-रेज़ है हर पर्दा दिल के साज़ का
हर-नफ़स पर मुझ को धोका है तिरी आवाज़ का
वहशी कानपुरी
ग़ज़ल
यूँही बैठे रहो बस दर्द-ए-दिल से बे-ख़बर हो कर
बनो क्यूँ चारागर तुम क्या करोगे चारागर हो कर
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
फ़ज़ा-ए-ज़ौक़-ए-तमाशा है सर-बसर महदूद
वसीअ' दायरा-ए-हुस्न और नज़र महदूद
सय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
ग़ज़ल
देखना उस की तजल्ली का जिसे मंज़ूर है
संग-रेज़ा भी नज़र में उस की कोह-ए-तूर है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
कोई महमिल-नशीं क्यूँ शाद या नाशाद होता है
ग़ुबार-ए-क़ैस ख़ुद उठता है ख़ुद बर्बाद होता है
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
तमाशा बन गईं नज़रें जहाँ देखा जिधर देखा
तिरे जलवों में गुम हो कर तुझी को जल्वा-गर देखा
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
ये किस के आस्ताने की ज़मीं मा'लूम होती है
कि जुम्बिश में मिरी लौह-ए-जबीं मा'लूम होती है
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
तिरी कोशिश हम ऐ दिल सई-ए-ला-हासिल समझते हैं
सर-ए-मंज़िल तुझे बेगाना-ए-मंज़िल समझते हैं