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ग़ज़ल
याद थीं हम को भी रंगा-रंग बज़्म-आराईयाँ
लेकिन अब नक़्श-ओ-निगार-ए-ताक़-ए-निस्याँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ताक़-ए-अबरू में सनम के क्या ख़ुदाई रह गई
अब तो पूजेंगे उसी काफ़िर के बुत-ख़ाने को हम
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
तजल्ली चेहरा-ए-ज़ेबा की हो कुछ जाम-ए-रंगीं की
ज़मीं से आसमाँ तक आलम-ए-अनवार हो जाए
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का
वो इक गुलदस्ता है हम बे-ख़ुदों के ताक़-ए-निस्याँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
न मेहराब-ए-हरम समझे न जाने ताक़-ए-बुत-ख़ाना
जहाँ देखी तजल्ली हो गया क़ुर्बान परवाना
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
मिज़्गान-ए-तर हूँ या रग-ए-ताक-ए-बुरीदा हूँ
जो कुछ कि हूँ सो हूँ ग़रज़ आफ़त-रसीदा हूँ