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ग़ज़ल
बोरिया तख़्त-ए-सुलैमाँ से कहीं बेहतर है
हम ग़रीबों को नहीं ताज-ओ-नगीं का लालच
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
दाइम है सुल्तानी हम शहज़ादों ख़ाक-निहादों की
बर्क़-ओ-शरर की मसनद हो या तख़्त-ए-बाद-ए-बहारी हो
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
इक तख़्त-ए-रवान-ए-शेर आया कुछ शाह-ए-सुख़न न फ़रमाया
फिर ताज-ए-तरन्नुम पहनाया और ग़ज़लों में तुलवाए गए
जमीलुद्दीन आली
ग़ज़ल
झूट है जब ख़्वाहिश-ए-नाम-ओ-नमूद-ओ-तख़्त-ओ-ताज
झूट की ख़्वाहिश में क्यूँ कर उम्र कटती है मियाँ
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
ग़ज़ल
कह दीजियो मकहूली को ऐ गर्दिश-ए-तालेअ'
हाँ जल्दी से ला तख़्त-ए-हवा-दार हमारा