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ग़ज़ल
हिज्र ओ विसाल चराग़ हैं दोनों तन्हाई के ताक़ों में
अक्सर दोनों गुल रहते हैं और जला करता हूँ मैं
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
उड़ी तिश्नगी के कूचे में वो गर्द इक तरफ़ से
हम उठा सके न ताक़ों से गिरे हुए सुबू भी
महशर बदायुनी
ग़ज़ल
ग़म नहीं जो ख़्वाबों की लुट गई हैं ताबीरें
हम नज़र के ताक़ों में और ख़्वाब लिक्खेंगे
बख़्श लाइलपूरी
ग़ज़ल
रात आती है तो ताक़ों में जलाते हैं चराग़
ख़्वाब ज़िंदा हैं सो आँखों में जलाते हैं चराग़
असलम महमूद
ग़ज़ल
जर्रार छौलिसी
ग़ज़ल
ताक़ों में चराग़ों का धुआँ जम सा गया है
अब हम भी निकलते नहीं उजड़े हुए घर से
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
मेरी ताक़ों में धरे मेरी ग़रीबी के चराग़
सिलसिला सूरज से अपना क्या बताना छोड़ दें