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ग़ज़ल
कैसे टेढ़ा न चले मार बड़ी मुश्किल है
सीधी हो ज़ुल्फ़-ए-गिरह-दार बड़ी मुश्किल है
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
फ़रार मिल न सका हब्स-ए-जिस्म-ओ-जाँ से कि हम
तिलिस्म-ख़ाना-ए-तकरार-ए-ख़ैर-ओ-शर में रहे
सहर अंसारी
ग़ज़ल
क़ुबूल-ए-तौबा-ओ-अफ़्व-ए-गुनह सब कुछ सही लेकिन
कभी ना-कर्दनी की ख़ुद पशेमानी नहीं जाती
शाकिर नायती
ग़ज़ल
मुझ को आलूदा रखा इस मिरी गुमराही ने
अरक़-ए-शर्म-ए-गुनह भी तो बहाने न दिया