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ग़ज़ल
बड़े लोगों के ऊँचे बद-नुमा और सर्द महलों को
ग़रीब आँखों से तकता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
वसी शाह
ग़ज़ल
अब किसे साहिल-ए-उम्मीद से तकता है 'फ़राज़'
वो जो इक कश्ती-ए-दिल थी उसे ग़र्क़ाब समझ
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
अब के शहर-ए-ज़िंदगी में सानेहा ऐसा हुआ
मैं सदा देता उसे वो मुझ को तकता रह गया
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
हैरत से तकता है सहरा बारिश के नज़राने को
कितनी दूर से आई है ये रेत से हाथ मिलाने को
सऊद उस्मानी
ग़ज़ल
रोज़ छुप के तकता है प्यासी प्यासी नज़रों से
उस के घर के आगे से दरिया जब गुज़रता है
अंजुम लुधियानवी
ग़ज़ल
अब आईना हैरत से इक इक का मुँह तकता है 'सलीम'
पहले लोग तो आईने में चेहरा देखने वाले थे
सलीम कौसर
ग़ज़ल
उसी सूखे शजर के नीचे तेरी राह तकता हूँ
बिछड़ते वक़्त तू जिस से लिपट के ख़ूब रोया था
संदीप ठाकुर
ग़ज़ल
सिर्फ़ इतनी है 'मुज़फ़्फ़र' अपनी रूदाद-ए-हयात
मैं ज़माने को ज़माना मुझ को तकता रह गया