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ग़ज़ल
उसी मय-ख़्वार की अज़्मत है साक़ी की निगाहों में
जिसे 'ज़मज़म' गवारा तल्ख़ी-ए-काम-ओ-दहन भी है
सूफ़ी अय्यूब ज़मज़म
ग़ज़ल
सुरूर-ए-बादा-ए-हस्ती को इस दौर-ए-तबाही में
शहीद-ए-तल्ख़ी-ए-काम-ओ-दहन कहना ही पड़ता है
हसन जाफ़री
ग़ज़ल
रग-ओ-पय में जब उतरे ज़हर-ए-ग़म तब देखिए क्या हो
अभी तो तल्ख़ी-ए-काम-ओ-दहन की आज़माइश है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ऐ दिल वालो घर से निकलो देता दावत-ए-आम है चाँद
शहरों शहरों क़रियों क़रियों वहशत का पैग़ाम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
न रास आई कभी मुझ को बज़्म-ए-कम-नज़राँ
'फ़ज़ा' भी बैठ के इन पागलों में क्या करता