आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "talab-e-daam-o-diram"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "talab-e-daam-o-diram"
ग़ज़ल
हैं तलबगार मोहब्बत के मियाँ जो अश्ख़ास
वो भला कब तलब-ए-दाम-ओ-दिरम करते हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
अनमोल सही नायाब सही बे-दाम-ओ-दिरम बिक जाते हैं
बस प्यार हमारी क़ीमत है मिल जाए तो हम बिक जाते हैं
शमीम करहानी
ग़ज़ल
वाबस्ता-ए-दाम-ए-होश-ओ-ख़िरद हंगामा-ए-वहशत करना है
ता'मीर के रंगीं फूलों से तख़रीब का दामन भरना है
क़ाज़ी सय्यद मुश्ताक़ नक़्वी
ग़ज़ल
मौसम-ए-गुल साथ ले कर बर्क़ ओ दाम आ ही गया
यानी अब ख़तरे में गुलशन का निज़ाम आ ही गया
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
मक़्दूर नहीं हम को फ़र्त-ए-दम-ए-जौलाँ पर
कर देंगे निछावर जाँ हम 'इश्वा-ए-सामाँ पर
डॉ. हबीबुर्रहमान
ग़ज़ल
दाम-ए-ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-बुताँ से छुड़ा लिया
क्या बाल बाल मुझ को ख़ुदा ने बचा लिया
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
इक क़लंदर की तरह वक़्त रहा महव-ए-ख़िराम
उस ने कब ध्यान ''तलब'' शोर-ए-सगाँ पर रक्खा
ख़ुर्शीद तलब
ग़ज़ल
देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियाँ
हम से अजब तिरा दर्द का नाता देख हमें मत भूल मियाँ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
वो तलव्वुन-ए-दम-ए-होश था कभी कुछ बने कभी कुछ बने
ये जुनून-ए-इश्क़ की शान है जो बना दिया सो बना दिया