आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "talab-gaar-e-kul"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "talab-gaar-e-kul"
ग़ज़ल
दिल है यूँ बे-दिली-ए-होश के हाथों लर्ज़ां
कोई क़ातिल से तलब-गार-ए-अमाँ हो जैसे
शानुल हक़ हक़्क़ी
ग़ज़ल
वो मोहब्बत-आफ़रीं देता है हस्ब-ए-ज़र्फ़-ए-इश्क़
फिर किसी से भी तलब-गार-ए-वफ़ा होता नहीं
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
हैरान अक़्ल-ए-कुल की है उस की सिफ़त को देख
सब जा में जल्वा-गर है मगर एक जा नहीं
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
महमूद राशिद
ग़ज़ल
जिस वक़्त तू ने फ़र्त-ए-मोहब्बत में अपना आप
गर्द-ए-रह-ए-तलब में मिटाया तो हम हुए