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ग़ज़ल
मोहम्मद अजमल नियाज़ी
ग़ज़ल
कल शब-ए-वस्ल-ए-अदू 'लुत्फ' तो आया होगा
रश्क से आप से शायद कि मिला हो कि न हो
मोहम्मद लुतफ़ुद्दीन ख़ान लुत्फ़
ग़ज़ल
नस्ब करें मेहराब-ए-तमन्ना दीदा ओ दिल को फ़र्श करें
सुनते हैं वो कू-ए-वफ़ा में आज करेंगे नुज़ूल मियाँ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
राहत-ए-कौनैन वस्ल-ए-जिस्म-ओ-जाँ समझा था मैं
ज़िंदगी को सूद मरने को ज़ियाँ समझा था में
जगदीश सहाय सक्सेना
ग़ज़ल
राहत-ए-कौनैन वस्ल-ए-जिस्म-ओ-जाँ समझा था मैं
ज़िंदगी को सूद मरने को ज़ियाँ समझा था मैं
जगदीश सहाय सक्सेना
ग़ज़ल
पूछा ख़िताब यार से किस तरह कीजिए शाम-ए-वस्ल
चुपके से अंदलीब ने फूल से कुछ कहा कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
सारे दिन करते हैं हम दश्त-ए-तमन्ना का सफ़र
गर्द चेहरे पे लिए शाम को घर आते हैं