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ग़ज़ल
उन्हें तो मना नहीं करते ज़ुल्म से नासेह
हमीं को ता'ना-ओ-तशनीअ'-ओ-पंद करते हैं
राजा गिरधारी प्रसाद बाक़ी
ग़ज़ल
आली शेर हो या अफ़्साना या चाहत का ताना बाना
लुत्फ़ अधूरा रह जाता है पूरी बात बता देने से
जलील ’आली’
ग़ज़ल
अभी मरते हैं हम जीने का ता'ना फिर न देना तुम
ये ता'ना उन को देना जिन से ऐसा हो नहीं सकता