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ग़ज़ल
कहीं तुम अपनी क़िस्मत का लिखा तब्दील कर लेते
तो शायद हम भी अपना रास्ता तब्दील कर लेते
सलीम कौसर
ग़ज़ल
वो ख़याल खोल के देखना वो सवाल तौल के देखना
कि समझ रहे हो जिसे ख़फ़ा वो ख़फ़ा न हो कहीं यूँ न हो
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
है अदम में ग़ुंचा महव-ए-इबरत-ए-अंजाम-ए-गुल
यक-जहाँ ज़ानू तअम्मुल दर-क़फ़ा-ए-ख़ंदा है