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ग़ज़ल
वक़्त की भट्टी में तप तप कर हम ने ये जाना 'बेताब'
सच्चा है इक दर्द का रिश्ता बाक़ी रिश्ते झूटे हैं
हफीज़ बेताब
ग़ज़ल
दुख में रोना-धोना कैसा मूरख इंसाँ होश में आ
तू इस भट्टी में तप-तप कर कुंदन बनता जाएगा
नाज़िश प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
अमीर चंद बहार
ग़ज़ल
घर की खपड़ैलों के अंदर टप-टप मेघ बरसते थे
अम्मा बाबू टाँकते रहते टीन में साबुन की टिक्की
शारिक़ क़मर
ग़ज़ल
दिल का लहू ये आँसू बन के आँख से टप टप गिरने लगा
समझो उसे पानी का न क़तरा अश्क नहीं दुर्दाना है