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ग़ज़ल
जहाँ डाले थे उस ने धूप में कपड़े सुखाने को
टपकती हैं अभी तक रस्सियाँ आहिस्ता आहिस्ता
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
शबनम की जा-ए-गुल से टपकती हैं शोख़ियाँ
गुलशन में किस की ख़ाक-ए-शहीदान-ए-नाज़ है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
वो घोला ज़हर नफ़रत का सियासत ने फ़ज़ाओं में
गुलों की आँख से शबनम लहू बन कर टपकती है
आली ख़ान जौहर
ग़ज़ल
ज़ब्ह के वक़्त भी क़ातिल को दुआएँ दी हैं
क़तरे क़तरे से टपकती है वफ़ा मेरे बा'द