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ग़ज़ल
मेरे अश्क-ए-शौक़-ए-पैहम में थी उस की दास्ताँ
उस के अंदाज़-ए-तबस्सुम में मिरा अफ़्साना था
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
क़ैस को फ़ज़्ल-ए-तक़द्दुम है वगरना याँ क्या
सर-ए-शोरीदा नहीं या जिगर-ए-चाक नहीं
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
ग़ज़ल
हाल-ए-दिल कहने को कहते हो तो कब तुम मुझ को
हाए जिस वक़्त नहीं ताब-ए-तकल्लुम मुझ को
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
है हिफ़्ज़-ए-मा-तक़द्दुम क्या 'इश्क़ का बताते
मुझ को हुआ था लाहक़ ये मर्ज़-ए-ला-दवा जब
डॉ. हबीबुर्रहमान
ग़ज़ल
मिरी रूह की हक़ीक़त मिरे आँसुओं से पूछो
मिरा मज्लिसी तबस्सुम मिरा तर्जुमाँ नहीं है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
क्यूँ ये मेहर-अंगेज़ तबस्सुम मद्द-ए-नज़र जब कुछ भी नहीं
हाए कोई अंजान अगर इस धोके में आ जाए तो