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ग़ज़ल
अब क्यूँ है उदासी का समाँ हद्द-ए-नज़र तक
कल रात ख़यालों में कोई जाग रहा था
मीर नक़ी अली ख़ान साक़िब
ग़ज़ल
भले कामों से कल तक आदमी मशहूर होता था
बुरे कामों से इंसाँ आज-कल मशहूर होता है