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ग़ज़ल
घरों की तर्बियत क्या आ गई टी-वी के हाथों में
कोई बच्चा अब अपने बाप के ऊपर नहीं जाता
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
मिरे हल्क़ा-ए-सुख़न में अभी ज़ेर-ए-तर्बियत हैं
वो गदा कि जानते हैं रह-ओ-रस्म-ए-कज-कुलाही
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हाँ उसे शाएर ज़माना कह रहा है इन दिनों
जो दिवाना अपने ग़म की तर्बियत करता रहा