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ग़ज़ल
तपिश गुलज़ार तक पहुँची लहू दीवार तक आया
चराग़-ए-ख़ुद-कलामी का धुआँ बाज़ार तक आया
अख़्तर हुसैन जाफ़री
ग़ज़ल
बहुत हुआ तो मिरी मोहब्बत तिरी गली तक सफ़र करेगी
गुलाब जैसी हिकायतों को इधर उधर मो'तबर करेगी
ख़ुमार कुरैशी
ग़ज़ल
है 'इश्क़ तो फिर जाँ से गुज़र क्यों नहीं जाते
क़ातिल इसे कहते हो तो मर क्यों नहीं जाते
मोहम्मद अफ़ज़ल ख़ान
ग़ज़ल
चला हूँ अपनी मंज़िल की तरफ़ तो शादमाँ हो कर
कहीं मायूसी-ए-दिल हो न रहज़न पासबाँ हो कर
फ़िगार उन्नावी
ग़ज़ल
ऐ दिल-ए-ज़ार लिखो जानिब-ए-जानाँ काग़ज़
हाल का लिखते हैं फ़ुक़रा सू-ए-सुल्ताँ काग़ज़
मातम फ़ज़ल मोहम्मद
ग़ज़ल
फिर ज़बान-ए-इश्क़ चश्म-ए-ख़ूँ-फिशाँ होने लगी
फिर हदीस-ए-दिल सर-ए-महफ़िल बयाँ होने लगी