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ग़ज़ल
हुस्न शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-अलम है शायद
ग़म-ज़दा लगती हैं क्यूँ चाँदनी रातें अक्सर
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
कमाल-ए-इलम ओ तहक़ीक़-ए-मुकम्मल का ये हासिल है
तिरा इदराक मुश्किल था तिरा इदराक मुश्किल है
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
कमाल लखनवी
ग़ज़ल
मोअर्रिख़ यूँ जगह देता नहीं तारीख़-ए-आलम में
बड़ी क़ुर्बानियों के बा'द पैदा नाम होता है
जुर्म मुहम्मदाबादी
ग़ज़ल
इश्क़ पर दाना नहीं मोहताज-ए-तहरीक-ए-जमाल
जलने वाला जल बुझेगा शम-ए-सोज़ाँ देख कर
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
अम्न-ओ-तहज़ीब पे है मौत का आलम तारी
देखिए जिस को वही जंग के मैदान में है
चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी
ग़ज़ल
गुल-गूना-ए-तरक़्क़ी-तहज़ीब-ओ-'इल्म से
शुक्र-ए-ख़ुदा कि सुर्ख़ हैं रुख़्सार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
तुम्हारा ग़म ग़म-ए-आलम की सुर्ख़ी बन तो सकता है
कोई धब्बा अगर तारीख़ पर आया तो क्या होगा