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ग़ज़ल
लुत्फ़-ए-जफ़ा-ए-दोस्त का कैसे अदा हो शुक्रिया
लज़्ज़त-ए-सोरिश-ए-जिगर देने लगी दुआ कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
इतनी भी दिल से एहतियात बर्क़-ए-जमाल-ए-यार क्या
शौक़-ए-उमीद-वार देख तरफ़-ए-उमीद-वार क्या
मुनीर भोपाली
ग़ज़ल
फ़िक्र-ए-फ़र्दा है कभी रंज-ओ-ग़म-ए-दोश कभी
किस क़दर रूह-ए-बशर मोरिद-ए-आफ़ात हुई
लक्ष्मी नारायण फ़ारिग़
ग़ज़ल
तेरे फ़क़ीर का ग़ुरूर ताजवरों से है सिवा
तर्फ़-ए-कुलह में दे शिकन उस को ये दर्द-ए-सर नहीं
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
कहूँ किस से रात का माजरा नए मंज़रों पे निगाह थी
न किसी का दामन-ए-चाक था न किसी की तर्फ़-ए-कुलाह थी