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ग़ज़ल
'असद' हर जा सुख़न ने तरह-ए-बाग़-ए-ताज़ा डाली है
मुझे रंग-ए-बहार-ईजादि-ए-बे-दिल-पसंद आया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
उन से बहार ओ बाग़ की बातें कर के जी को दुखाना क्या
जिन को एक ज़माना गुज़रा कुंज-ए-क़फ़स में राम हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जिन पे बारिश-ए-गुल है उन का हाल क्या होगा
ज़ख़्म खाने वाले भी बाग़ बाग़ हैं यारो