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ग़ज़ल
कभी तौफ़ीक़ तर्क-ए-मा-सिवा की हो ही जाएगी
दिल-ए-आज़ाद होगा और ऐश-ए-जावेदाँ होगा
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
ये क़ुर्ब बोद क्या है तक़रीब-ए-मा-सिवा है
है तर्क-ए-मा-सिवा में ये दूर का तमाशा
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
मैं लफ़्ज़-ए-ख़ाम हूँ कोई कि तर्जुमान-ए-ग़ज़ल
ये फ़ैसला किसी ताज़ा किताब पर ठहरा