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ग़ज़ल
नाम पे हम क़ुर्बान थे उस के लेकिन फिर ये तौर हुआ
उस को देख के रुक जाना भी सब से बड़ी क़ुर्बानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
मिरे मौसमों के भी तौर थे मिरे बर्ग-ओ-बार ही और थे
मगर अब रविश है अलग कोई मगर अब हवा कोई और है
नसीर तुराबी
ग़ज़ल
वही आस्ताँ है वही जबीं वही अश्क है वही आस्तीं
दिल-ए-ज़ार तू भी बदल कहीं कि जहाँ के तौर बदल गए