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ग़ज़ल
दरीचे बंद ज़ेहनों के नहीं खुलते हैं ताक़त से
लगा हो ज़ंग ताले में तो चाबी टूट जाती है
मन्नान बिजनोरी
ग़ज़ल
फूटी चूड़ी टूटी धनक रंगों का सेहर बिखरता सा
सूने उफ़ुक़ पर बहते बादल गर्म तवे से उठती भाप
अहसन शफ़ीक़
ग़ज़ल
जो घर में परतव-ए-ज़ौ था उसे बुझा गई रात
जो दिल में विरसा-ए-ख़ूँ था वो सब सहर ने लिया
महशर बदायुनी
ग़ज़ल
तिरी सोचां की भँवरां में कोई रस्ता नहीं मिलता
सफ़र ये बोझ लागे है मोहब्बत ख़ून है तावे
आफ़ताब शाह
ग़ज़ल
वुजूद जलता तवा है कोई मैं उस तवे पर
'अदम की जौ हूँ सो जल रहा हूँ सो भुन रहा हूँ
अमीर हम्ज़ा साक़िब
ग़ज़ल
सच कहते हैं शैख़ 'अकबर' है ताअत-ए-हक़ लाज़िम
हाँ तर्क-ए-मय-ओ-शाहिद ये उन की बुज़ुर्गी है