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ग़ज़ल
तज़ईन-ए-लब-ओ-गेसू कैसी पिंदार का शीशा टूट गया
थी जिस के लिए सब आराइश उस ने तो हमें देखा भी नहीं
फ़हमीदा रियाज़
ग़ज़ल
न देते सारे मंज़र अक्स ही थोड़े से दे देते
हम आवारा कहाँ तज़ईन-ए-ख़ाना करने वाले थे
ज़फ़र गोरखपुरी
ग़ज़ल
दिल के दाग़ों ही से तज़ईन-ए-गुलिस्ताँ की है
क़ाबिल-ए-दीद बहारों का समाँ है ऐ दोस्त
ज़ुबैदा तहसीन
ग़ज़ल
हम तो हैं आज भी तज़ईन-ए-गुलिस्ताँ में शरीक
अपने हाथों में नहीं नज़्म-ए-गुलिस्ताँ न सही
अहसन आज़मी
ग़ज़ल
यारो जिस्म की ख़ुश-पोशी से तज़ईन-ओ-तौक़ीर नहीं
दिल को भी तो रौशन कीजे पाकीज़ा अफ़कारों से