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ग़ज़ल
पड़े हैं मस्त भी साक़ी अयाग़ के नज़दीक
हुजूम पर हैं पतंगे चराग़ के नज़दीक
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी
ग़ज़ल
बर्ग पीले क्या हुए शोर-ए-ख़िज़ाँ उठने लगा
बे-शरर ही सीना-ए-गुल से धुआँ उठने लगा
अब्दुल मतीन नियाज़
ग़ज़ल
शो'ला-ज़ारों से कभी आब-ए-रवाँ से गुज़रे
हम तिरी राह में हर सूद-ओ-ज़ियाँ से गुज़रे
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
ग़ज़ल
नज़रों में अब तसव्वुर-ए-जानाँ है और हम
उन की तजल्लियात का 'इरफ़ाँ है और हम
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
ग़ज़ल
हुआ है सर में सौदा फिर किसी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ का
न दामन की ख़बर हम को न होश अपने गरेबाँ का
अब्दुल मजीद ख़्वाजा शैदा
ग़ज़ल
दिलबर ये वो है जिस ने दिल को दग़ा दिया है
ऐ चश्म देख तुझ को मैं ने सुझा दिया है