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ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
शिकायत ज़िंदगी से क्यूँ करें हम ख़ुद ही थम जाएँ
जो कम-रफ़्तार होते हैं वो कम-रफ़्तार होते हैं
अब्बास क़मर
ग़ज़ल
मुझे आह-ओ-फ़ुग़ान-ए-नीम-शब का फिर पयाम आया
थम ऐ रह-रौ कि शायद फिर कोई मुश्किल मक़ाम आया
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
चलते चलते कुछ थम जाना फिर बोझल क़दमों से चलना
ये कैसी कसक सी बाक़ी है जब पाँव में वो काँटा भी नहीं