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ग़ज़ल
नाच उठे रक़्क़ासा-ए-जाँ धड़कनों की थाप पर
साज़ हाथों में उठाए दिल के सन्नाटों में आ
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
कसी हुई मिर्दंग सा पानी हवा की थाप से बजता है
लहर तरंग से उठती है झंकार किसी एकतारे की
ज़ेब ग़ौरी
ग़ज़ल
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइ'ज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले