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ग़ज़ल
रअशा थी ज़बाँ में लुक्नत पाँव बेड़ी मोहरा देंगे
मुँह से कुछ का कुछ निकलेगा दिल में जो ठहराओगे तुम
रज़ा अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
तदबीर हमारे मिलने की जिस वक़्त कोई ठहराओगे तुम
हम और छुपेंगे यहाँ तक जी जो ख़ूब ही फिर घबराओगे तुम
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा
दीवारों से सर टकराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा
सईद राही
ग़ज़ल
ये भोग भी एक तपस्या है तुम त्याग के मारे क्या जानो
अपमान रचियता का होगा रचना को अगर ठुकराओगे
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
हर आन तुम्हारे छुपने से ऐसा ही अगर दुख पाएँगे हम
तो हार के इक दिन इस की भी तदबीर कोई ठहराएँगे हम
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
माना आज कड़ा पहरा है हम बिफरे इंसानों पर
लेकिन सोचो तिनका कब तक तूफ़ाँ को ठहराएगा