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ग़ज़ल
तुम ने बारूद की थैलियों में जना था नई नस्ल को
आज कहते हो ये अम्न-अंगेज़ थी इस को क्या हो गया
मुनीर जाफ़री
ग़ज़ल
तुम ने बारूद की थैलियों में जना था नई नस्ल को
आज कहते हो ये अम्न-अंगेज़ थी इस को क्या हो गया
मुनीर जाफ़री
ग़ज़ल
कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा
कुछ फ़ज़ा कुछ हसरत-ए-परवाज़ की बातें करो
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
क़फ़स की तीलियों से ले के शाख़-ए-आशियाँ तक है
मिरी दुनिया यहाँ से है मिरी दुनिया वहाँ तक है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
न सुहाग-रात चमक सकी यूँही कसमसाते सहर हुई
कोई दीप गुम-शुदा थालियों में जलाना हो कहीं यूँ न हो
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
शकील आज़मी
ग़ज़ल
क़फ़स की तीलियों में जाने क्या तरकीब रक्खी है
कि हर बिजली क़रीब-ए-आशियाँ मालूम होती है
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
'साजिद' क़फ़स की तीलियों को तोड़ कर भी मैं
इस दश्त-ए-बे-कनार में वहशत न कर सका