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ग़ज़ल
ठेस लगी है कैसी दिल पर हम से खिंचे से रहते हो
आख़िर प्यारे आया कैसे इस शीशे में बाल कहो
सय्यद शकील दस्नवी
ग़ज़ल
दिल-ए-बे-हौसला है इक ज़रा सी ठेस का मेहमाँ
वो आँसू क्या पिएगा जिस को ग़म खाना नहीं आता