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ग़ज़ल
कैसी लहर है सर्द हवा की सारे ठिठुरे बैठे हैं
कल तक तो बस हम चुप चुप थे आज ख़मोशी आम हुई
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
गोद में भर लूँ दिल में छुपा लूँ यही है मन की चाह
जाड़े के ठिठुरे हुए दिन में साजन साजन धूप
रम्ज़ अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
ऐसी यख़-बस्ता ख़मोशी में न फिर ज़िंदा बचेंगे
मेरे ठिठुरे होंट लफ़्ज़ों की हरारत चाहते हैं
ज़ुल्फ़ेक़ार अहमद ताबिश
ग़ज़ल
छीन लेती है कभी चेहरों से गुल-शादाबियाँ
और कभी ठिठुरे हुए जिस्मों को गरमाती है धूप
नज़ाक़तुल्लाह खां फ़ैज़ी खां फ़ैज़ी
ग़ज़ल
किसी की याद से इस उम्र में दिल की मुलाक़ातें
ठिठुरती शाम में इक धूप का कोना ज़रूरी है