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ग़ज़ल
मैं पा-शिकस्ता कहाँ तिफ़्ल-ए-नय सवार कहाँ
फिर उस की गर्द कहाँ और मिरा ग़ुबार कहाँ
किशन कुमार वक़ार
ग़ज़ल
हटे ग़ुबार जो लौ से तो मेरी जोत जगे
जलूँ मैं फिर से नई आब-ओ-ताब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
वो तिफ़्ल-ए-मकतब-ए-रस्म-ए-वफ़ा हमीं तो न थे
जो अपनी यादों का मेला लगा के बैठ रहे
शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा
ग़ज़ल
न सोवे आबलों में गर सरिश्क-ए-दीदा-ए-नाम से
ब-जौलाँ-गाह-ए-नौमीदी निगाह-ए-आजिज़ाँ पा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
यूँ लगा रखी है दिल से ज़िंदगी की आरज़ू
जैसे तिफ़्ल-ए-जाँ-ब-लब मज़दूर की आग़ोश में
अब्ब्दुर्रऊफ़ शाहिद अंसारी
ग़ज़ल
पी लेंगे हम भी बज़्म में साक़ी के शौक़ से
पैदा करे तू अश्क-ए-मय-ए-नाब का ख़वास