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ग़ज़ल
ऐसा अनोखा ऐसा तीखा जिस को कोई सह न सके
हम समझे पत्ती पत्ती को हम ने ही सरशार किया
मीना कुमारी नाज़
ग़ज़ल
शख़्सियत का ये तवाज़ुन तेरा हिस्सा है 'फ़ज़ा'
जितनी सादा है तबीअ'त उतना ही तीखा हुनर
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
अदा-ए-यार में अब इक निराला तीखा-पन उभरा
निगाह-ए-नाज़ में अब कुछ नए पहलू निकलते हैं
नईम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मैं तेरे बा'द जिस से भी मिला तीखा रखा लहजा
कि इस बे-लौस चाहत के 'एवज़ इतना तो वाजिब था
शहराम सर्मदी
ग़ज़ल
पूरब देस की यादें लाया फिर मौसम का तीखा-पन
मुझ से पहरों उन्स करे है तन्हाई का सूना-पन
कैलाश माहिर
ग़ज़ल
इसी लिए तो मिरे सुख़न में ये तीखा-पन है
मैं हासिदों में बड़ा हुआ हूँ मिरे 'अज़ीज़ो
यासिर रज़ा आसिफ़
ग़ज़ल
तुम ने लहजा मीठा रख कर तीखी बातें बोली हैं
हम ने बातें मीठी की हैं लहजा तीखा रक्खा है