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ग़ज़ल
सारे रिंद औबाश जहाँ के तुझ से सुजूद में रहते हैं
बाँके टेढ़े तिरछे तीखे सब का तुझ को इमाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
रात के दश्त में फूल खिले हैं भूली-बिसरी यादों के
ग़म की तेज़ शराब से उन के तीखे नक़्श मिटाते रहना
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
मेरे तीखे शेर की क़ीमत दुखती रग पर कारी चोट
चिकनी चुपड़ी ग़ज़लें बे-शक आप ख़रीदें सोने से
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
तीखे-पन के तिरे क़ुर्बान अकड़ के सदक़े
क्या ही बैठा है लगा कर के सिपर का तकिया
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
जलती मिट्टी सूखे काँटे गहरे पानी तीखे संग
सब ख़तरे पाँव के नीचे सर पे बला कोई भी नहीं
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
तीखे तेवर बाप का ग़ुस्सा माँ की ममता लाड दुलार
मेरे लिए ये बेश-कीमती सरमाया है सब का सब