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ग़ज़ल
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
ज़िंदा रहने की ख़्वाहिश में दम दम लौ दे उठता हूँ
मुझ में साँस रगड़ खाती है या माचिस की तीली है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
वही करते हैं दावा आग नफ़रत की बुझाने का
कि जिन के हाथ में जलती हुई माचिस की तीली है
नीरज गोस्वामी
ग़ज़ल
मेरे उस के बीच का रिश्ता इक मजबूर ज़रूरत है
मैं सूखे जज़्बों का ईंधन वो माचिस की तीली सी
खुर्शीद अकबर
ग़ज़ल
इन चट्टानी रातों को इक रौशन तीली तोड़ेगी
बरसों से इक सुब्ह हमारा नाम पुकारा करती है
कैलाश सेंगर
ग़ज़ल
तीली दिखा तो दी मगर जल्दी से फिर बुझा के आग
उस ने मिरे तमाम ख़त झाड़ के धूल उठा लिए