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ग़ज़ल
शमीम देहलवी
ग़ज़ल
ख़ुदा समझे ये क्या सय्याद ओ गुलचीं ज़ुल्म करते हैं
गुलों को तोड़ते हैं बुलबुलों के पर कतरते हैं
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
जो लम्हे टूट चुके उन को जोड़ते क्यूँ हो
ये जुड़ गए तो उन्हें फिर से तोड़ते क्यूँ हो
करामत अली करामत
ग़ज़ल
'शरफ़' दम तोड़ते हैं इक परी-रू की जुदाई में
अजब आलम है उन का देख आए जिस का जी चाहे
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
असलम गुरदासपुरी
ग़ज़ल
चलो अच्छा हुआ तुम आ गए दम तोड़ता था मैं
यही दुश्वार थी साअ'त यही था वक़्त मुश्किल का