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ग़ज़ल
ब-क़ौल-ए-'मीर' ये इंसान पर तोहमत-तराशी है
किसी मजबूर का मुमकिन नहीं मुख़्तार हो जाना
शोला करारवी
ग़ज़ल
ख़ूब तमाशा हम को बनाया आप तमाशा आप हुए
हम को रुस्वा करने निकले कैसे रुस्वा आप हुए
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
बिजलियाँ टूट पड़ीं जब वो मुक़ाबिल से उठा
मिल के पल्टी थीं निगाहें कि धुआँ दिल से उठा
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
वो नक़ाब-ए-रुख़ उठा कर कभी बाम तक न पहुँचे
वो करम भी क्या करम है जो अवाम तक न पहुँचे
साहिर सियालकोटी
ग़ज़ल
याद है रोज़-ए-अज़ल उस ने कहा क्या क्या कुछ
बर-ख़िलाफ़ इस के यहाँ तू ने किया क्या क्या कुछ