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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
जिस बादल की आस में जोड़े खोल लिए हैं सुहागन ने
वो पर्बत से टकरा कर बरस चुका सहराओं में
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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जिस बादल की आस में जोड़े खोल लिए हैं सुहागन ने
वो पर्बत से टकरा कर बरस चुका सहराओं में