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ग़ज़ल
तोशे-दानों में भरे रहते हैं उन के कारतूस
इस लिए ख़तरा रखे है हर तिलंगा आग का
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
नामवरी की बात दिगर है वर्ना यारो सोचो तो
गुलगूँ अब तक कितने तेशे बे-ख़ून-ए-फ़रहाद हुए
जौन एलिया
ग़ज़ल
मुसीबत का पहाड़ आख़िर किसी दिन कट ही जाएगा
मुझे सर मार कर तेशे से मर जाना नहीं आता
यगाना चंगेज़ी
ग़ज़ल
तेशे की क्या मजाल थी ये जो तराशे बे सुतूँ
था वो तमाम दिल का ज़ोर जिस ने पहाड़ ढा दिया
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
फ़रहाद ने क्या देख के सर तेशे से फोड़ा
सूझा न कुछ इस रू से कि तिहरा गईं आँखें
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
सवाद-ए-तिश्नगी के पार इक मव्वाज दरिया
ग़ज़ल-ख़्वाँ हो तो फिर तेशे उठाएँगे नहीं क्या