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ग़ज़ल
फ़ासले हैं भी और नहीं भी नापा तौला कुछ भी नहीं
लोग ब-ज़िद रहते हैं फिर भी रिश्तों की पैमाइश पर
गुलज़ार
ग़ज़ल
पल में तोला पल में माशा पल में सब दरहम बरहम
ज़र्रा-ए-ख़ाकी नज़रें मिलाए बैठे हैं सय्यारों से
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
कोयल कव्वा चील कबूतर तोता मैना चिड़िया मोर
शाम ढले सब चुप चुप बैठे इक दूजे को तकते हैं
दानिश अज़ीज़
ग़ज़ल
यारों की तोता-चश्मी का आख़िर इतना शिकवा क्यूँ
'रहबर' तुम भी कब मुख़्लिस थे ख़ुद अपने अहबाब के साथ
रहबर जौनपूरी
ग़ज़ल
सेहर किया कि टोटका आई ये वाए क्या बला
हाए ये जी किधर चला ज़ोर-ए-अदा दिखा गए