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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
अपने पैरों में भी बिजली की अदाएँ थीं मगर
देख कर तूर-ए-जहाँ ख़ुद को सुबुक-गाम किया
अम्बर बहराईची
ग़ज़ल
जब तजल्ली उन की बर्क़-अर्ज़ानियों पर आ गई
आबले से दिल के पैदा तूर-ए-सीना कर दिया
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
वो परचम वो सर के तुर्रे और वो सफ़ीने अपने थे
जिन को देख के शो'ले भी रोए थे जलते वक़्त बहुत
अख्तर लख़नवी
ग़ज़ल
सदा-ए-लन-तरानी आती है उन के तकल्लुम से
गिरा दें तूर-ए-दिल पर साइक़ा बर्क़-ए-तबस्सुम से
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
हुस्न के उस की किया तूर-ए-तजल्ली दिल को
हाए क्या जल्वा-ए-दीदार है अल्लाह अल्लाह