aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "uThaa.e"
दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँ नहींबैठे हैं रहगुज़र पे हम ग़ैर हमें उठाए क्यूँ
मैं जिस की आँख का आँसू था उस ने क़द्र न कीबिखर गया हूँ तो अब रेत से उठाए मुझे
कह सके कौन कि ये जल्वागरी किस की हैपर्दा छोड़ा है वो उस ने कि उठाए न बने
मैं जो कहता हूँ उठाए हैं बहुत रंज-ए-फ़िराक़वो ये कहते हैं बड़ा दिल है तवाना तेरा
वो दोपहर अपनी रुख़्सत की ऐसा-वैसा धोका थीअपने अंदर अपनी लाश उठाए मैं झूटा ज़िंदा था
फ़ना भी हो के गिराँ-बारी-ए-हयात न पूछउठाए उठ नहीं सकता ये दर्द-ए-सर फिर भी
लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता हैरंज भी ऐसे उठाए हैं कि जी जानता है
मैं उस को अपनी वहशत तोहफ़े में दूँहाथ उठाए जिस ने सहरा देखा है
ख़ुदा जाने मिरी गठरी में क्या हैन जाने क्यूँ उठाए फिर रहा हूँ
अपनी तो दास्ताँ है बस इतनीग़म उठाए हैं शाएरी की है
उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ेंफ़क़त कमरों में टहला क्यों करें हम
'साजिद' तू अपने नाम का कतबा उठाए फिरये लफ़्ज़ कब लिबास-मआनी में आएगा
उठाए जाएँ जहाँ हाथ ऐसे जलसे मेंवही बुरा जो कोई मसअला उठाता है
ज़ईफ़ बरगद के हाथ में रा'शा आ गया हैजटाएँ आँखों पे गिर रही हैं उठाए कोई
गुनाहगारों पे उँगली उठाए देते हो'वसीम' आज कहीं तुम भी संगसार न हो
उठाए फिरते थे एहसान जिस्म का जाँ परचले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले
जो दुआ को हाथ उठाए भी तो मुराद याद न आ सकीकिसी कारवाँ का जो ज़िक्र था वो पस-ए-ग़ुबार कहाँ रहा
फिर न निकला कोई घर से कि हवा फिरती थीसंग हाथों में उठाए किसी पागल की तरह
जिस्म का बोझ उठाए हुए चलते रहिएधूप में बर्फ़ की मानिंद पिघलते रहिए
वो जो गर्दन झुकाए बैठे हैंहश्र क्या क्या उठाए बैठे हैं
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