aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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उठाई क्यूँ न क़यामत अदू के कूचे मेंलिहाज़ आप को वक़्त-ए-ख़िराम किस का था
अब की जो राह-ए-मोहब्बत में उठाई तकलीफ़सख़्त होती हमें मंज़िल कभी ऐसी तो न थी
इस रंग से उठाई कल उस ने 'असद' की ना'शदुश्मन भी जिस को देख के ग़मनाक हो गए
ख़ुदा करे न फँसे दाम-ए-इश्क़ में कोईउठाई है जो मुसीबत किसी को क्या मालूम
उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ेंफ़क़त कमरों में टहला क्यों करें हम
दुनिया से ऐ दिल इतनी तबी'अत भरी न थीतेरे लिए उठाई नदामत कहाँ कहाँ
रेत मेरी उम्र मैं बच्चा निराले मेरे खेलमैं ने दीवारें उठाई हैं गिराने के लिए
जिस ने नज़र उठाई वही शख़्स गुम हुआइस जिस्म के तिलिस्म की बंदिश तो देखिए
क्या उठाएगी सबा ख़ाक मिरी उस दर सेये क़यामत तो ख़ुद उन से भी उठाई न गई
सलीस शुस्ता मुरस्सा नफ़ीस नर्म रवाँदबा के दाँतों में आँचल ग़ज़ल उठाई गई
अभी दीवार उठाई भी न हो दिल की तरफ़लेकिन इस में कोई दर कोई दरीचा लग जाए
ये उम्र भर जो परेशानियाँ उठाई हैं हम नेतुम्हारे अइयो ऐ तुर्रह-हा-ए-ख़म-ब-ख़म आगे
आँख उठाई ही थी कि खाई चोटबच गई आँख दिल पे आई चोट
एक दीवार उठाई थी बड़ी उजलत मेंवही दीवार गिराने में बहुत देर लगी
दिल है कि मरा जाता है दीदार की ख़ातिरहम हैं कि उधर आँख उठाई नहीं जाती
बात तो इतनी सी है वापस जाने को मैं आया थासाँस उठाई उम्र समेटी चलने की तय्यारी की
मर जाते क्यूँ न सुब्ह के होते ही हिज्र मेंतकलीफ़ कैसी कैसी उठाई तमाम शब
नक़ाब-ए-हुस्न-ए-दो-आलम उठाई जाती हैमुझी को मेरी तजल्ली दिखाई जाती है
बहुत से वो थे जिन्हों ने बुतों से फ़ैज़ उठाएबहुत से वो थे जिन्हों ने ख़ुदा से बातें कीं
देखो तो ज़रा ख़ाक में हम मिलते हैं क्यूँकरये नीची निगह अब भी उठाई नहीं जाती
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