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ग़ज़ल
मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगे
या'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
बहुत चेहरे निगाहों में उभरते डूबते हैं
अगर कुछ देर को रौशन चराग़-ए-याद कर दूँ
ग़ुलाम हुसैन साजिद
ग़ज़ल
ग़ुबार होती सदी के सहराओं से उभरते हुए ज़माने
नए ज़मानों में आए तुझ को तलाश करते हुए ज़माने
सलीम कौसर
ग़ज़ल
अब ऐसी करम की बातों से दबती हैं कहीं दिल की चोटें
तुम जितना मिटाते जाते हो ये नक़्श उभरते आते हैं
जमीलुद्दीन आली
ग़ज़ल
तारीक फ़ज़ाओं के उभरते रहे तूफ़ाँ
फिर भी तिरी यादों के दिए ख़ूब जले हैं