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ग़ज़ल
मिरी बंद पलकों पे टूट कर कोई फूल रात बिखर गया
मुझे सिसकियों ने जगा दिया मिरी कच्ची नींद उचट गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
नींद उचट जाने से सब पर झुंझलाहट सी तारी है
आँखें मीचे बाँध रहे हैं ख़्वाबों के शीराज़े लोग
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
चोट सी लगती है दिल जंगल से होता है उचाट
संग-ए-तिफ़्लाँ करते हैं मुझ को इशारे शहर से
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
बंगले में जा के ख़ाक रहे कोई 'मुसहफ़ी'
कर दें हैं आदमी का यहाँ जी उचाट साँप