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ग़ज़ल
हम कि जिन्हें तारे बोने थे हम कि जिन्हें सूरज थे उगाने
आस लिए बैठे हैं सहर की जलते दिए बुझा देने से
जलील ’आली’
ग़ज़ल
कि जिस दिल की ज़मीं बरसों से बंजर हो तो फिर उस पर
नई चाहत उगाने में ज़रा सी देर लगती है
आदिल राही
ग़ज़ल
कोई तो आए ख़िज़ाँ में पत्ते उगाने वाला
गुलों की ख़ुश्बू को क़ैद करना कोई तो सीखे