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ग़ज़ल
बुतान-ए-महविश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं
कि जिस की जान जाती है उसी के दिल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
उजड़ी यादो टूटे सपनो शायद कुछ मालूम हो तुम को
कौन उठाता है रह रह कर टीसें शाम-सवेरे दिल में