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ग़ज़ल
बसने दो नशेमन को अपने फिर हम भी करेंगे सैर-ए-चमन
जब तक कि नशेमन उजड़ा है फूलों का नज़ारा कौन करे
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
महफ़िलें जो उजड़ गईं सज भी गईं हज़ार बार
मेरा जहान-ए-आरज़ू उजड़ा तो फिर बसा नहीं