आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "ukh.de"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "ukh.de"
ग़ज़ल
मस्लहतों की धूल जमी है उखड़े उखड़े क़दमों पर
झिजक झिजक कर उड़ते परचम देखने वाले देखता जा
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
देखा तो इस चमन में बाद-ए-ख़िज़ाँ के हाथों
उखड़े हुए ज़मीं से क्या क्या शजर पड़े हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
बद-गुमानी न हो क्यूँ तब के गए पर अफ़्ज़ूँ
देख उखड़े लब-ए-माशूक़ के तबख़ाल की खाल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
ऐसे हाल में अब तुम मेरे ख़याल में आते हो कैसे
उखड़े उखड़े से शब को थके हाल में आते हो कैसे
गीतांजली गीत
ग़ज़ल
वक़्त है ऐसा फ़र्ज़ानों के पाओं उखड़े जाते हैं
एक न इक दिन काम आएगी दीवानों की चाल मियाँ
क़ासिम नियाज़ी
ग़ज़ल
'मुसहफ़ी' साँग से क्या उखड़े है पश्म उस की भला
सौ तरह से हो जिसे याद ज़बाँ का बहरूप
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
उखड़े उखड़े से रहते हो घर में सब कुछ ठीक तो है
कुछ कहना हो कुछ कहते हो घर में सब कुछ ठीक तो है